
विष्णु तिवारी
भदौ ११, २०७९

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सुतेकालाइ कान समाति जगाउँ कसरि
ढाडिएकालाइ बर्षे भेलमा बगाउँ कसरि।।
खायो फेरि खाउँखाउँ हुने व्यथा अचम्म
भुँडी चर्कि उकस मुकुस अघाउँ कसरि।।
छाप लाउने बेला आयो कुरा भए मिठा
फटाहा समाइ गोर्खे लौरी लगाउँ कसरि।।
जोतेनन् बाँझा पाखा खाए पराल कुनिउँ
बिनाकामका खानपानेलाइ सघाउँ कसरि।।
वन बेचे जन बेचे आखिर माटो पनि बेचे
बेचुवालाइ लखेटि उतैतिर भगाउँ कसरि।।

